सूत्र :नाभिव्यक्तिनिबन्धनौ व्यवहाराव्यवहारौ II1/120
सूत्र संख्या :120
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : अब यहां पर संदेह होता है कि यद्यपि उत्पत्ति से पहिले सत् कार्य की किसी प्रकार उत्पत्ति हो, परन्तु जब कार्य सत्ता अनादि है, तो उसका नाश क्यों हो सके। इसका उत्तर यह है कि कार्य की उत्पत्ति का व्यवहार और अव्यवहार अभिव्यक्ति निमित्तक है, अर्थात् अभिव्यक्ति के भाव से कार्य की उत्पत्ति होती है अभिव्यक्ति के अभाव से उत्पत्ति का अभाव है। जो पूर्व यह यह शंका की थी, कि यदि कारण में कार्य रहता है, तो उत्पन्न हुआ ऐसा कहना भी नहीं हो सकता। उसके ही उत्तर में यह सूत्र है कि अभिव्यज्यमान कार्य की उत्पत्ति का व्यवहार अभिव्यक्ति निमित्तक है। पूर्व जो कार्य असत् नहीं वा उसकी अब उत्पत्ति हुई यह कथन ठीक नहीं है।