सूत्र :न भावे भावयोगश्चेत् II1/119
सूत्र संख्या :119
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : अब इसमें प्रश्न पैदा होता है कि कार्य तो नित्य है तो भाव रूप ‘सत्’ कार्य में भावरूप उत्पत्तियोग नहीं हो सकता, असत् से सत् की उत्पत्ति के व्यवहार होने से। अब इस विषय में आचार्य अपने मत प्रकाश करते है।