सूत्र :साधर्म्यवैधर्म्याभ्यां प्रत्यवस्थानं जातिः II1/2/59
सूत्र संख्या :59
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : हेतु देने में जो प्रसंग पैदा हो जाता है वह जाति कहाता है। प्रसंगानुरूप गुणवाला या विपरीत गुणों वाला बतलाने में जाति से ही काम लिया जाता है। अब साधर्म्य से और वैधर्म्य से जो दोष देना है वह जाति है क्योंकि साध्य (प्रतिज्ञा) के सिद्ध करने के लिए जहां प्रतिज्ञा के अनुकूल हेतु से काम लिया जाता है। वह साधमर्य वाला हेतु कहलाता है। और जहां प्रतिकूल हेतु से काम लिया जाता है वह वैधर्म्य हेतु कहलाता है। जाति को लेकर साधर्म्य और वैधर्म्य का ज्ञान होता है। इसका सविस्तार वर्णन तो परीक्षा के प्रकरण में आयगा।
प्रश्न-निग्रह किसे कहते हैं ?