सूत्र :न तदर्थान्तरभावात् II1/2/57
सूत्र संख्या :57
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : वाक्छल अर्थात शब्दिक छल और उपचार छल अर्थात् सम्बन्ध से धोका देना एक ही नहीं है क्योंकि उनमें बहुत अन्तर है। वाक्छल में नानार्थक शब्द के वक्ता के भाव के विपरीत अर्थों को लेकर उसके पक्ष का खण्डन किया जाता है और उपचार छल में दूसरे अर्थ नहीं किये जाते प्रत्युत वस्तु की सत्ता में जो विशेष सम्बन्ध रखने वाले गुण हैं। उनके द्वारा वस्तु की सत्ता का अभाव सिद्ध करके वक्ता के पक्ष का खण्डन किया जाता है। अब गौतम जी (सिद्धांत कहते हैं)