सूत्र :कर्मानवस्थायि-ग्रहणात् II3/2/45
सूत्र संख्या :45
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : प्रत्येक अर्थ के लिए बुद्धि नियत हैं, जब तक जिस अर्थ का सम्बन्ध बुद्धि के साथ रहता है, तब तक ही उसकी स्मृति भी रहती है। अर्थ के प्रत्यक्ष होने पर बुद्धि की उत्पत्ति और विनाश होने पर बुद्धि का नाश्ज्ञ हो जाता है। यह प्रत्यक्ष सिद्ध है, जब तक कोई पदार्थ सामने होता है, तब उसका ज्ञान भी नहीं रहता। इसलिए अस्थायी कर्म की ग्राहक होने से बुद्धि अनित्य है। फिर इसी की पुष्टि करते है: