DARSHAN
दर्शन शास्त्र : न्याय दर्शन
 
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Darshan

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सूत्र :प्रणिधाननिबन्धाभ्यासलिङ्गलक्षणसादृश्यपरि-ग्रहाश्रयाश्रितसम्बन्धानन्तर्यवियोगैककार्यविरोधातिशयप्राप्तिव्यवधानसुख-दुःखेच्छाद्वेषभयार्थित्वक्रियारागधर्माधर्मनिमित्तेभ्यः II3/2/44
सूत्र संख्या :44

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : प्रणिधान आदि 27 निमित्तों से स्मृति उत्पन्न होती है। (1)स्मरण की इच्छा से मन को किसी एक विषय में लगा देना प्रणिधान कहलाता है। (2) एक ग्रंथ में अनेक अर्थों के परस्पर सम्बन्ध को निबन्ध कहते है। (3)किसी काम के बारबार करने से जो संस्कार उत्पन्न होते हैं उनको अभ्यास कहते हैं। (4)धूम को देखने से जो अग्नि का स्मरण होता है इसको लिंग कहते हैं। (5) जो धर्म किसी पदार्थ को दूसरे से पृथक करे या जिनसे कोई पदार्थ जाना जाये, उसको लक्षण कहते है। (6) सादृश्य अर्थात् समता जैसे चित्र को देख कर चित्रस्थ व्यक्ति का स्मरण हो आता है। (7)परिग्रह, पुत्र के देखने से पिता और शिष्य के देखने से गुरु का स्मरण हो आता है। (8-9) आश्रय और आश्रित जो जिसके सहारे रहे, सहारे को आश्रय और सहारे रहने वाले को आश्रित कहते हैं, जैसे भृत्य और स्वामी। (10) सम्बन्ध, जैसे गुरु शिष्य का या पिता पुत्र का। (11)आनन्तर्य, एक काम के पीछे जो दूसरा किया जाता हैं, उसे आनन्तर्य कहते हैं, जैसे ब्रह्मयज्ञ के पश्चात् देवयज्ञ। (12) वियोग, जिसका वियोग होता है, उसका स्मरण किया जाता है। (13) एक कार्य, यदि बहुत से मनुष्य एक काम के करने वाले हों तो वे परस्पर स्मरण का हेतु होते है। (14) विरोध, जिसका परस्पर विरोध हैं, वे भी एक दूसरे को याद दिलाते है। (15)अतिशय, अत्यन्त होते से, जैसे अत्यन्त बुद्धिमान होने से बहस्पति और अत्यन्त नीतिमान होने से शुक्र का स्मरण होता है। (16) प्राप्ति, जिससे जिसको जिस वस्तु की प्राप्ति होती है, वह वस्तु उसकी याद दिलाती है। (17) व्यवधान, आवरण को कहते हैं, जैसे भित्ति को देखकर गृह का स्मरण होता है। (18-19)सुखःदुख प्रसिद्ध हैं, इनसे इनके हेतु का ज्ञान होता है। (20-21)इच्छा, द्वेष से इष्ट अनिष्ट का स्मरण होता है। (22)भय से भय के हेतु का स्मरण होता है। (23)अथित्वे, मांगने से दाता का स्मरण होता है। (24) क्रिया से कर्ता का, (25)राग से ईप्सित अर्थ का। (26) धर्म और (27) वे अधर्म से सुख-दुख तथा इनके अदृष्ट कारणों का स्मरण होता है। ये 27 स्मृति के कारण हैं, इनके अतिरिक्त और भी कारण हो सकते हैं। अब बुद्धि के अनित्य होने में और भी हेतु देते है:

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