सूत्र :समानप्रसवात्मिका जातिः II2/2/71
सूत्र संख्या :71
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जो भिन्न-भिन्न पदार्थों में समता का भाव हैं, या जिन की उत्पत्ति (बनावट) एक जैसी हो, वह जाति है और वह आकृति और बनावट की समता से जानी जाती है।
व्याख्या :
प्रश्न - जाति कितने प्रकार की है ?
उत्तर - दो प्रकार की। एक सामान्य और दूसरी विशेष। जैसे मनुष्य जाति सामान्य हैं, उसमें ब्राह्मण, क्षत्रियादि या श्वेत कृष्णादि या देश भेद या धर्म भेद और आचार भेद से विशेष या अवान्तर जातियां बनती हैं। प्रमाण और जाति की परीक्षा समाप्त हुई।
इति द्वितीय आह्निकः इति द्वितीयोऽध्यायः