सूत्र :प्रकृत्यनियमाद्वर्णविकाराणाम् II2/2/56
सूत्र संख्या :56
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : प्रकृति और उसका विकार नियत होते हैं, जैसे दूध प्रकृति हैं तो दही उसका विकार है, यह कभी नहीं हो सकता कि दही प्रकृति हो जावे और दूध उसका विकार, अर्थात् सदा दूध से दही बनेगा, दही दूध कभी न बनेगा, परन्तु यदि वर्णों में विकार माना जावे तो उसमें यह नियम नहीं है। क्योंकि यदि कहीं इकार से यकार बनता है तो कहीं यकार से भी इकार बन जाता है। इसलिए प्रकृति और विकार का नियम न होने से शब्दों में विकार मानना ठीक नहीं। फिर आक्षेप करते हैं:-