सूत्र :नित्यत्वेऽविकारादनित्यत्वे चानवस्थानात् II2/2/52
सूत्र संख्या :52
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : यदि वर्ण को नित्य माना जावे तो उसमें विकार हो नहीं सकता, क्योंकि जिसमें विकार होता है, वह नित्य नहीं हो सकता। यदि वर्ण को अनित्य मानो तो दूसरे वर्ण के कहने से पहले का नाश हो जाता हैं, तब वर्ण की अनवस्थिति से विकार होना असम्भव है। इसलिए दोनों दशाओं में वर्ण में विकार होना सिद्ध नहीं हो सकता। अब इसका खण्डन करते हैं:-