सूत्र :वर्णत्वा व्यतिरेकाद्वर्ण विकारानामप्रतिषेध:II2/2/50
सूत्र संख्या :50
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जैसे सुवर्ण के विकार आभूषणादि में सुवर्णत्व धर्म रहता है ऐसे ही इकार से बने हुए यकार में वर्णत्व धर्म रहता है अर्थात् दोनों वर्ण ही कहलाते है। अतएव वर्ण में विकार ही मानना ठीक है, आगे इसका उत्तर देते हैं:-