सूत्र :या शब्दसमूहत्यागपरिग्रहसंख्यावृद्ध्युपचयवर्णसमासानु-बन्धानां व्यक्तावुपचाराद्व्यक्तिः II2/2/62
सूत्र संख्या :62
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : . व्यक्ति ही एक पदार्थ है, क्योंकि शब्दादि का व्यवहार उसी में देखा जाता है। शब्द = गौ जाती है, समूह = गौओं का समूह, त्याग = गौ का दान, ग्रहण = गौ का लेना, संख्या = 10 गौवें, वृद्धि = गौ मोटी है, अपचय = गौ दुबली है, वर्ण = काली, या धौली गौ, समाज = गौ बैठती है, अनुबन्ध = गौ का मुख इन सब व्यवहारों का उपचार (प्रयोग) व्यक्ति में ही देखा जाता है। इनका सम्बन्ध आकृति और जाति से नहीं हैं, अतः व्यक्ति ही पद का अर्थ है। अब इस पर वादी आक्षेप करता हैं:-