सूत्र :नित्या-नामतीन्द्रियत्वात्तद्धर्मविकल्पाच्च वर्णविकाराणामप्रतिषेधः II2/2/53
सूत्र संख्या :53
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : नित्य पदार्थों के धर्म भिन्न-भिन्न हैं, कोई नित्य पदार्थ तो ऐसे है कि जो इन्द्रियों से ग्रहण नहीं होते, जैसे आकाश, काल आदि और कोई नित्य विकारी हैं और कोई इन्द्रियग्राह्य हैं, जैसे मनुष्य जाति, गो जाति इत्यादि। इसी प्रकार कोई नित्य विकारी हैं और कोई अविकारी। यदि कहो कि विकार और अविकार ये दो विरुद्ध धर्म एक पदार्थ में नहीं रह सकते तो उन नित्य पदार्थों में इन्द्रिय गोचर होना और अतीन्द्रिय होना ये दो विरुद्ध धर्म देखे जाते हैं तो उनमें विकार और अविकार ये दोनों धर्म भी रह सकते हैं। परन्तु वादी का यह हेतु ठीक नहीं, क्योंकि इन्द्रियां गोचर होना नित्य होने का विरोधी नहीं हैं, किन्तु विकारी होना नित्यता का विरोधी अवश्य है। और दो विरुद्ध गुण एक पदार्थ में रह नहीं सकते। अब जो अनित्य होने की दशा में विकार का होना सिद्ध किया हैं, उसका खण्डन करते हैं:-