सूत्र :विधिर्विधायकः II2/1/62
सूत्र संख्या :62
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जिस वाक्य में किसी काम के करने की प्रेरणा व आज्ञा पाई जाये, उसे विधिवाक्य कहते हैं, जैसे कहा जाये कि यज्ञ करो, दान दो, विद्या पढ़ो इत्यादि इसका नाम विधि है।
व्याख्या :
प्रश्न-क्या विधि में करने का ही उपदेश होता है या छोड़ने का भी, क्योंकि प्रायः शास्त्रों में झूठ मत बोलो, हिंसा मत करो, इत्यादि निषेधमुख वाक्य भी देखे जाते हैं।
उत्तर- विधि दो प्रकार का है, एक उपादेय का ग्रहण दूसरे हेय का त्याग। इसलिए निषेध के तात्पर्य को भी विधि के अन्तर्गत मान कर यहां उसका पृथक ग्रहण नहीं किया, क्योंकि ये दोनों चाहे कहने में भिन्न-भिन्न मालूम हों, परन्तु तात्पर्यइनका एक ही है, जो प्रयोजन सच बोलने का है, वही झूठ न बोलने का भी है। अब अर्थवाद का लक्षण कहते हैं-