सूत्र :स्तुतिर्निन्दा परकृतिः पुराकल्प इत्यर्थवादः II2/1/63
सूत्र संख्या :63
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : अर्थवाद चार प्रकार का होता है, जिनके नाम ये हैं-
(1)स्तुति (2) निदा (3) परकृति (4) पुराकल्प।
व्याख्या :
प्रश्न- स्तुति किसे कहते हैं?
उत्तर-स्तुति उसको कहते हं कि जिस वाक्य के सूनन से श्रोता के हृदय में उस काम के लिए प्रीति और श्रद्धा उत्पन्न हो जाये, जैसे कहा जाये कि जो विद्या पढ़ता है, वह यशस्वी होता है, शत्रु भी उसका आदर करते हैं इसलिए मनुष्य को विद्या पढ़नी चाहिए।
प्रश्न- निदा किसे कहते हैं?
उत्तर- निन्दा उसे कहते हैं कि जो बुरे काम के दोष और उसके अनिष्ट परिणामों को वर्ण करके श्रोता को उस काम से विमुख औ निवृत्त कर देना। यथाः जो मूर्ख रहता है, उसकी बड़ी दुर्गती होती है, उसके अपने भी उसकी तरफ आंख उठा कर नहीं देखते। इसलिए मनुष्य को मुर्ख कभी न रहना चाहिउ।
प्रश्न- परकृति किसे कहते हैं?
उत्तर- दूसरों के किए हुए अच्छे या बुरेकर्मों का दृष्टान्त देकर और उनकी स्तुति एंव निदा करके अच्छे कर्म में प्रवृत्ति दिलाना और बुरे कर्म से हटाना प्रकृति कहलाती है। जैसे किसी ने कहा कि राजा युधिष्ठिर सच बोलने के कारण परम धर्मात्मा थे, किन्तु एक बार झूठ बोलने से थोड़ा देर के लिए उनको नरक में जाना पड़ा।
प्रश्न- पुराकल्प किसे कहते हैं?
उत्तर-जिन कामों या उपदेशों को प्राचीन काल के विद्वानों ने किया या कहा हो या जो शिष्ट परम्परा हो, उसकी इतिहास और शास्त्रों से निश्चय करक तदनुसार आचरण करना पुराकल्प कहलाता हैं, जैसे कहा जाये कि इसीलिये पहले ब्राह्यणों ने विद्या पढ़ना अपना धर्म समझा था कि बिना उसके और किसी उपाय से भी आत्मा की शान्ति नहीं हो सकती। अब तीसरे अनुवाद का लक्षण कहते हैं।