सूत्र :पूर्वभावित्वे द्वयोरेकतरस्य हानेऽन्यतरयोगः II1/75
सूत्र संख्या :75
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : पहिले होने में एक यह भी युक्ति है कि कार्य नाश होकर कारण में मिल जाता है, और अन्त में सब कार्य पदार्थ प्रकृति में लय हो जाते है। यदि को शंका करे कि जब प्रकृति और पुरूष दोनों कार्य जगत् से पहले थे, तो अकेली प्रकृति को क्यों कारण माना जावे? इसका उत्तर यह है कि पुरूष परिणामी नही और उपादान कारण का परिणाम ही कार्य कहलाता है, और पुरूष के अपरिणामी होने में १५-१६ के सूत्र प्रमाण है। यदि प्रकृति सम्बन्ध से प्रकृति द्वारा पुरूष में परिणाम मानें और दोनों को कारण माने तो वृथा गौरव होगा।