सूत्र :युक्तितोऽपि न बाध्यते दिङ्मूढवदपरोक्षादृते II1/59
सूत्र संख्या :59
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : इस केवल कथनमात्र दुःख का भी युक्ति से नाश नही सकता, बिना अपरोक्ष ज्ञान के। जैसे किसी मनुष्य को पूर्व दिशा में उत्तर का भ्रम हो जावे तो जब तक पूर्व और उत्त दिशा का भली-भांति ज्ञान न हो जावे, तब तक यह भ्रम जा ही नही सकता, इस कारण विवेक की आवश्यकता है, और सूत्र में भी दिखलाया गया है कि जब तक दिशा का प्रत्यक्ष न हो जावे तब तक भ्रमनिवृत्ति नही हो सकती। इसलिए जब तक प्रकृति और पुरूष के धर्मं का ठीक निश्चय करके प्रकृति ससे निवृत्ति और पुरूष की प्राप्ति न हो तब तक दुःख भी दूर न होगा।