सूत्र :ततः प्रकृतेः II1/65
सूत्र संख्या :65
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : और उस मन से प्रकृति, जो मन का कारण है, उसका अनुमान होता है, क्योंकि मन मध्यम परिणाम वाला होने से कार्य है और प्रत्येक कार्य का कारण अवश्य होता है, अब मन का कारण प्रकृति के अतिरिक्त और कुछ हो नही सकता। क्योंकि पुरूष तो परिणाम रहित है, और मन का शरीर की तरह मध्यम परिणाम वाला होना श्रुति, स्मृति और युक्ति से सिद्ध है? क्योकि मन सुख, दुःख और मोह धर्मंवाला है, इस वास्ते उसका कारण भी मोह धर्म वाला होना चाहिए। दुःख परतन्त्रता का नाम है, और पुरूष की परतन्त्रता हो नही सकतो। परतन्त्रता केवल जडद्य प्रकृति का धर्म है उसका कार्य मन है।