सूत्र :तेनान्तःकरणस्य II1/64
सूत्र संख्या :64
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : और अहंकारूपी कार्यं से उसके कारण अन्तः कारण का अनुमान होता है, क्योंकि प्रथम मन में वस्तु के, अस्तित्व का निश्चय करके उसमें अहंकार किया जाता है, अर्थात् उसे अपना मानते है। जिस समय तक वस्तु का अस्तित्व का निश्चय न हो तब तक उसमें अभिमान नही होता है, अर्थात् मै हूं, और मेरा है, यह ज्ञान जब तक अपने और चीज के अस्तित्व का ज्ञान न हो, किस तरह हो सकता है?