सूत्र :न श्रुतिविरोधो रागिणां वैराग्याय तत्सिद्धेः II6/51
सूत्र संख्या :51
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जिन श्रुतियों से अद्वैत की सिद्धि होती है उनसे और जो द्वैत को सिद्ध करती है उनसे कुछ भी विरोध न होगा, क्योंकि जो ईश्वर को छोड़कर जीव वा शरीर को ईश्वर मानते हैं उनको समझाने के लिए वे श्रृतियां हैं अर्थात् ईश्वर को उन श्रुतियों में अद्वैत अद्वितीय ऐ आदि विशेषणों से इसलिए कहा है कि उसके समान दूसरा और कोई नहीं है, अतः द्वैत के मानने से श्रुतियों से विरोध नहीं होता।