सूत्र :उपाधिश्चेत्तत्सिद्धौ पुनर्द्वैतम् II6/46
सूत्र संख्या :46
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : यदि ऐसा कहा जाय कि सूर्य एक है, परन्तु उसकी छाया के अनेकों स्थानों में पड़ने से अनेक सूर्य दीखने लगते हैं, इसी प्रकार ईश्वर एक है किन्तु शरीररूपी उपाधियों के होने से अनेका है तो भी ऐसा कहना ठीक नहीं है, क्योंकि जो एक ब्रह्य के सिवाय और दूसरे को मानते ही नहीं हैं यदि वह लोग ब्रह्य और उपाधि को मानेंगे तो अद्वैत न रहेगा, किंतु द्वैतवाद हो जाएगा।