सूत्र :प्रकाशतस्तत्सिद्धौ कर्मकर्तृ-विरोधः II6/49
सूत्र संख्या :49
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : ब्रह्य प्रकाशस्वरूप है इसलिए जो चाहे सो कर सकता है अर्थात् चाहे तो घटादि रूप हो जार्य इस प्रमाण से यदि ब्रह्य को घटादि रूप कहकर अद्वैतवाद की सिद्धि की जाय तो कत्र्ता और कर्म का विराध होगा, क्योंकि ऐसा कहीं नहीं देखने में आता कि कत्र्ता कर्म हो गया हो, जैसे-घट का कत्र्ता कुम्हार है और कुम्हार का कर्म घट है, तो दोनों को भिन्न-भिन्न पदार्थ मानना होगा, ऐसा नहीं कह सकते कि कुम्हार ही घट है।