सूत्र :द्वाभ्याम-प्यविरोधान्न पूर्वमुत्तरं च साधकाभावात् II6/48
सूत्र संख्या :48
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : द्वैत, अद्वैत इन दोनों से हमारा कोई विरोध नहीं है, क्योंकि ईश्वर अद्वैत तो इसलिए है कि उसके बराबर औ कोई नहीं है। द्वैत इस वास्ते है कि जीव और प्रकृति के गुण ईश्वर की अपेक्षा और प्रकार के मालूम होते हैं, इस वास्ते ऐसा न कहना चाहिए कि पहिला पक्ष सत्य है वा दूसरा, क्योंकि एक पक्ष की पुष्टि करने वाला कोई प्रमाण नहीं दीखता, किन्तु जीव ईश्वर के पार्थक्य सिद्ध करने वाले प्रमाण दीखते हैं।