सूत्र :अनुपभोगेऽपि पुमर्थं सृष्टिः प्रधानस्यो-ष्ट्रकुन्नमवहनवत् II6/40
सूत्र संख्या :40
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : यद्यपि प्रकृति अपनी सृष्टि का आप भोग नहीं करती तथापि उसकी सृष्टि के लिए है, जैसे-ऊंट अपने स्वामी के लिए केशर को ले जाता है, ऐसे हो प्रकृति भी सृष्टि करती है।