सूत्र :न नित्यः स्यादा-त्मवदन्यथानुच्छित्तिः II6/13
सूत्र संख्या :13
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : अविवेक नित्य नहीं हो सकता। यदि नित्य ही माना जायगा तो उसका नाश हो सकेगा, जैसे आत्मा का नाश नहीं होता है और उस अविवेक के नाश न होने से मुक्ति न हो सकेगी, इसलिये अविवेक को प्रवाहरूप से अनादि (अनित्य) मानना चाहिये।