सूत्र :तदपि दुःखशबलमिति दुःखपक्षे निःक्षिपन्ते विवेचकाः II6/8
सूत्र संख्या :8
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : यदि किसी प्रकार कुछ थोड़ा बहुत प्राप्त भी हुआ तो भी सुख दुःख के निश्चय करने वाले विद्वान् लोग उस सुख को भी दुःख में बिनते हैं क्योंकि उसमें भी दुःख मिले हुए होते हैं, जैसे विष का मिला हुआ मिष्ट पदार्थ। इस वास्ते सांसारिक सुख को जोड़कर मोक्ष सुख के वास्ते उपाय करना चाहिए।