सूत्र :परधर्मत्वेऽपि तत्सिद्धिरविवेकात् II6/11
सूत्र संख्या :11
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : यद्यपि सांसारिक दशा में गुणों का सर्वदा पुरूष में ही बोध होता हैं, परन्तु उस प्रकार का बोध अविवेक से पैदा होता है, क्योंकि जो अविवेकी हैं वही सांसारिक कर्मों केा पुरूषकृत मानते हैं, परन्तु वास्तव में वह प्रकृति और पुरूष के संयोग से होते हैं, इसलिए संयोग-जन्य हैं।