सूत्र :अनादिरविवेकोऽन्यथा दोषद्वयप्रसक्तेः II6/12
सूत्र संख्या :12
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : अविवेक को प्रवाहरूप से अनादि मानना चाहिये, यदि सादि मानोगे तो यह प्रश्न उत्पन्न होगा कि उसको किसने पैदा किया? यदि प्रकृति और पुरूष से पैदा हुआ तब उनसे ही पैदा हुआ और उनका ही बन्ध करे, यह दोषा होगा। दूसरा यह प्रश्न हो सकता है यदि कर्मों से इसकी उत्पत्ति मानें तो इस प्रश्न को अवकाश मिलता है कि कर्म किससे उत्पन्न हुए हैं, इसलिए इन दोनों दोषों के दूर करने के लिए अविवेक को अनादि मानना चाहिए।