सूत्र :श्रुतिलिङ्गादिभिस्तत्सिद्धिः II5/21
सूत्र संख्या :21
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : उसकी सिद्धि श्रुति और योगिकों के प्रत्यक्ष से हो सकती है। ‘‘पुण्यों वै पुण्येन भवति पापः पापेन’’ पुण्य निश्चित करके पुण्य से होता है, और यह भी निश्चय है पाप, पाप से ही उत्पन्न होता है इत्यादि श्रुतियां भी धर्मं के फल को कहती हैं, इस वास्ते धर्मं पर अपलाप नहीं हो सकता।
प्रश्न- धर्म में कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं है, इस वास्ते उसकी सिद्धि नहीं हो सकती?।