सूत्र :न कामचारित्वं रागोपहते शुकवत् II4/25
सूत्र संख्या :25
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : राग के नाश हो जाने पर भी कामचारित्व (इच्छाधीन) न होना चाहियं, कारण यह है कि फिर बन्धन में पड़ने का भय प्राप्त हो सकता है। दृष्टान्त-जैसे कोई तोता दाने के लालच में होकर बन्धन में पड़ गया था, जब उसको मौका मिला तब वह उस बन्धन में से भाग गया फिर उस बन्धन के पास भय के मारे नहीं आया। क्योंकि अगर इसके पास जाऊंगा तो फिर बन्धन को प्राप्त होऊंगा। इसी पक्ष की और भी पुष्टि करेंगे।