सूत्र :इतरलाभेऽप्यावृत्तिः पञ्चाग्नियोगतो जन्मश्रुतेः II4/22
सूत्र संख्या :22
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : यदि पंचाग्नि योग से इतर अर्थात् शान्ति का लाभ भी कर लिया तो भी कर्मों की बलवती बनी रहेगी, अतएव वे कर्मं फिर भी उत्तरोत्तर उत्पन्न होते जायेंगे, इसी बात की श्रुतियां भी प्रतिपादन करती हैं। वे श्रुतियां छान्दोग्य उपनिषद के पंचम प्रपाठक के आदि में हैं, यहां विस्तार भय से उनको नहीं लिखा है।