सूत्र :विरक्तस्य हेयहानमुपादेयोपादानं हंसक्षीरवत् II4/23
सूत्र संख्या :23
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जो विरक्त है, अर्थात् जिसको विवेक हो गया है, उसको हेय (छोड़ने योग्य)का तो त्याग और उपादेय (ग्रहण करने योग्य) का ग्रहण करना चाहिये। हेय अर्थात् छोड़ने लायक संसार है। उपादेय ग्रहण करने लायक मुक्ति हैं, जैसे हंस को छोड़कर दूध पी लेते हैं, इसी तरह विरक्त को भी करना चाहिये।