सूत्र :प्रणतिब्रह्मचर्योपसर्पणानि कृत्वा सिद्धिर्बहुकालात्तद्वत् II4/19
सूत्र संख्या :19
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : गुरू से नम्र रहना, सदा गुरू की सेवा करना, ब्रह्यचर्य को धारण करना और वेद पढ़ने के वास्ते गुरू के पास जाना, इन्हीं कर्मों के करने से विवेक की सिद्धि हो जाती हैं, जैसे कि इन्द्र को हुई थी।