सूत्र :नोपदेशश्रवणेऽपि कृतकृत्यता परामर्शादृते विरोचनवत् II4/17
सूत्र संख्या :17
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : उपदेश के सुनते ही मात्र से कृतकृत्यता नहीं होती जब तक कि उसका विचार न किया जाए। दृष्टांत-बृहस्पति जी ने विरोचन इन्द्र दोनों को सत्योपदेश किया था। इन्द्र ने उस उपदेश को सुनकर विचारा भी, परन्तु विराचन ने न विचारा, किन्तु कान ही पवित्र किए।