सूत्र :तद्विस्मरणेऽपि भेकीवत् II4/16
सूत्र संख्या :16
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : तत्वज्ञान के भूलने से दुःख प्राप्त होता है। दृष्टांत-कोई राजा शिकार खेलने के वास्ते वन को गया था, वहां पर उस राजा ने दिव्यस्वरूप एक कन्या को देखा, और उस कन्या को देखकर राजा मोहित हो गया और बोला, कन्ये! तब वह बोली राजन, मैं भेकराज (मेढ़कों के राजा) की कन्या हूं। तब राजा अपनी स्त्री होने के वास्ते उसमें प्रार्थंना करने लगा, तब वह कन्या बोली, राजन! टगर मुझको जल का दर्शंन न हो जाएगा, तब ही मैं तेरा साथ छोड़ दूंगी, इस वास्ते मुझको जल का दश्ंन न होना चाहिए, यह मेरा नियम पालन करना होगा। राजा ने प्रसन्न होकर इस बात को स्वीकार कर लिया। एक समय वह दोनों आनन्द में आसक्त थे, तब वह कन्या राजा से बोली कहां जल है, तब राजा ने उस बात को भूलकर उसको जल दिखा दिया। जल दर्शंन के समय ही वह कन्या उस रूप को छोड़कर जल में प्रवेश कर गई। तब राजा ने दुःखी होकर उस कन्या को जल के अन्दर बहुत देखा लेकिन वह फिर न प्राप्त हुई, जैसे- यह राजा उस तत्व बात को भूलकर दुःख को प्राप्त हुआ, इसी तरह मनुष्य भी तत्वज्ञान के भूलने से दुःख को प्राप्त होता हैं।