सूत्र :इषुकारवन्नैकचित्तस्य समाधिहानिः II4/14
सूत्र संख्या :14
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जिसका मन एकाग्र रहता है, उसकी समाधि में किसी समय किसी प्रकार की भी हानि नहीं हो सकती। दृष्टांत-कोई बाण बनाने वाला अपने स्थल पर बैठा हुआ बाण बना रहा था, उसी समय उसकी बगल से होकर कटक सहित राजा निकल गया लेकिन उसको न मालूम हुआ कौन चला गया, और उसके काम में भी किसी प्रकार की बाधा न हुई क्योंकि उसका मन अपने काम में आसक्त था।