सूत्र :कृतनियमलङ्घनादानर्थक्यं लोकवत् II4/15
सूत्र संख्या :15
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : शौच, आचार आदि जो नियम विवेक की बुद्धि के वास्ते माने गए हैं, उनके लंघन से अर्थात् ठीक तौर से न पालने पर अनर्थ होता है और उन नियमों का फिर कुछ भी फल नहीं होता, जैसे कि रोगी के लाभ के वास्ते वैद्य ने बताया लेकिन उसने कुछ पथ्य न किया, उसको कुछ फल अच्छा न होगा किन्तु रोग वृद्धि को ही प्राप्त होगा।