सूत्र :निराशः सुखी पिङ्गलावत् II4/11
सूत्र संख्या :11
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जो मनुष्य आशा को त्यादेता है, वह सदैव पिंगला नाम वेश्या के समान सुख को प्राप्त होता है। दृष्टांत-पिंगला नाम वाली एक वेश्या थी, उसको जार मनुष्यों के आने का समय देखते-देखते बहुत रात बीत गई लेकिन कोई विषयी उसके पास न आया, तब वह जाकर सो रही, बाद को फिर उस वेश्या को ख्याल हुआ-शायद अब कोई आदमी आवे, ऐसा विचार कर वह वेश्या फिर उठ और बहुत समय तक जागती रही लेकिन फिर भी कोई न आया, तब उस वेश्या ने अपने चित्त में बड़ी ग्लानि मानी और कहा कि ‘आशा हि परम्र दुःख नैराश्य परम सुखम्’’ आशा बड़े दुःख देती है और नैराश्य में बड़ा भारी सुख है, ऐसा विचार कर उस वेश्या ने उस दिन से आशा त्याग दी और परम सुख को प्राप्त हुई। इसी तरह जो मनुष्य आशा को त्यागेंगे वे परम सुख को प्राप्त होंगे।