सूत्र :बहुभिर्योगे विरोधो रागादिभिः कुमारीशङ्खवत् II4/9
सूत्र संख्या :9
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : विवेक साधन के समय बहुतों का संग न करे, किंतु अकेले ही विवेक साधन को करे, क्योंकि बहुतों के साथ में राग द्वेषादि की प्राप्ति होती है, उससे साधन में विघ्न होने का भय प्राप्त हो जाता है दृष्टांत- जैसा कि कोई कुमारी (कन्या) हाथों में चूडि़यां पहन रही थी, जब दूसरी कन्या के साथ उसका मेल हुआ तब आपस में धक्का लगकर चूडि़यों का झनकार शब्द हुआ, इसी तरह यहां भी विचारना चाहिए कि बहुतों के संग में विवेक साधन नहीं हो सकता।