सूत्र :प्रकृतेराञ्जस्यात्ससङ्गत्वात्पशुवत् II3/72
सूत्र संख्या :72
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जब विचार करते हैं, तो ज्ञात होता है, कि प्रकृति का संयोग छूटना ही मोक्ष है, जैसे पशु रस्सी के संयोग से बंध जाता है, और उसका संयोग छूट जाता है, तब वह मुक्त हो जाता है, इसी तरह मनुष्य को भी जानना चाहिये।
प्रश्न- प्रकृति कौन-से साधनों से बन्धन करती है, और और कैसे मुक्त करती हैं?