सूत्र :रूपैः सप्तभिरात्मानं बध्नाति प्राधानं कोशकारवद्विमोचयत्येकरूपेण II3/73
सूत्र संख्या :73
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : धर्म, वैराग्य, ऐश्वर्य, अधर्म, अज्ञान अवैराग्य और अनैश्वर्य-इन सात रूपों से प्रकृति पुरूष का बन्धन करती है, जैसे तलवार के म्यान बनाने वाले की कारीगरी से तलवार ढकी रहती हैं, इसी तरह प्रकृति से पुरूष को भी समझना चाहिये, और वही प्रकृति ज्ञान से आत्मा को दुःखों से मुक्त कर देती है।
प्रश्न- जब मुक्ति में हेतु ज्ञान कहा, और धर्मादिक सब बन्धन के हेतु कहे, तो धर्म में क्यों प्रवृत्ति होगी, और क्यों ध्यानादि के वास्ते उपाय किया जावेगा?