सूत्र :कर्मनिमित्तयोगाच्च II3/67
सूत्र संख्या :67
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : सृष्टि के प्रवाह में जो कर्म हेतु है उनके कारण भी प्रकृति सृष्टि करने से विमुख नहीं होती और मुक्त मनुष्य के कर्म छूट जाते हैं, इस कारण उसके वास्ते सृष्टि शान्त हो जाती है।
प्रश्न- जब सब मनुष्य समान और निरपेक्ष हैं, तो किसी के वास्ते प्रकृति सृष्टि की निवृत्ति और किसी के वास्ते प्रवृत्ति हो इसमें क्या नियम है?
उत्तर- कर्म का प्रवाह ही इसमें नियम है।
प्रश्न- यह उत्तर ठीक नहीं क्योंकि न मालूम किस मनुष्य का कौन-सा कर्म है? यह भी निश्चय किया हुआ नियम नहीं है।