सूत्र :आब्रह्मस्तम्बपर्यन्तं तत्कृते सृष्टिराविवेकात् II3/47
सूत्र संख्या :47
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : ब्राह्यणें लेकर स्थावरादि तक जितनी सृष्टि हैं, वह सब पुरूष के वास्ते है, और उसे विवेक के होने तक ही सृष्टि रहती है, बाद को मुक्ति होने से छूट जाती है। अब तीन सूत्रों से सृष्टि के विभाग को कहते हैं -