DARSHAN
दर्शन शास्त्र : सांख्य दर्शन
 
Language

Darshan

Adhya

Shlok

सूत्र :ऊहादिभिः सिद्धिः II3/44
सूत्र संख्या :44

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : ऊह, शब्द अध्ययन और तीनों प्रकार के दुःखों का नाश होना, मित्र का मिलना, दान करना- इस तरह आठ प्रकार की सिद्धि होती है। बिना किसी के उपदेश के पूर्वजन्म के संस्कारों से हृत्व को अपने आप विचारों का नाम ऊह है। दूसरे से सुनकर वा अपने आप शास्त्र को विचार कर जो ज्ञान उत्पन्न किया है, उसका शब्द हैं शिष्य और आचार्य भाव से शास्त्र पढ़कर ज्ञानवान होने को अध्ययन कहते है हैं। यदि कोई दयावान् से अपने स्थान पर ही उपदेश देने आया हो, और उसी उपदेश से ज्ञान हो गया हो, इसको सूहृत्प्राप्ति कहते हैं और धन आदि देकर ज्ञान का जो प्राप्त करना है, उसको दान कहते हैं और पूर्वोक्त, आध्यात्मिक, आधिभौतिक, आधिदैविक, तीन प्रकार के दुःखों के विवरण को शास्त्र के आदि में हम वर्णन कर चुके हैं। प्रश्न- ऊह आदिकों से ही सिद्धि क्यों मानी जाती है? क्योंकि बहुतेरे मनुष्य मन्त्रों से अणिमादिक आठ सिद्धि मानते हैं, तब क्या उनका सिद्धांत मिथ्या हो सकता है?

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