सूत्र :अवान्तरभेदाः पूर्ववत् II3/41
सूत्र संख्या :41
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : पिवर्यय अर्थात् मिथ्या ज्ञान के अवान्तर भेद जो सातान्य रीति से पूर्वाचार्यो ने किये हैं, उनको उसी तरह समझना चाहिये, यहां विस्तारभय से नहीं कहे गये। अविद्यादिकों के जितने भेद हैं उनकी विशेष व्याख्या विस्ताभय विस्तारभय के कारण छोड़ दी है यदि कहे जावें तो कारिकाकार ने अविद्या के बासठ भेद माने हैं, जिसमें आठ-आठ प्रकार का तम और मोह, दस प्रकार का महामोह अठारह प्रकार का जातिस्त्र और अठारह ही प्रकार का अन्धतामिस्त्र यह सब मिलकर बासठ प्रकार के हुए। यदि इतने प्रकार के भेदों की भिन्न-भिन्न व्याख्या की जावे, तो बड़ा भारी दफ्तर भरने को चाहिये, लेकिन हमारे विचार से इतने भेद मानना और उनकी व्याख्या करना केवल झगड़ा ही हैं।