सूत्र :दैवादिप्रभेदा II3/46
सूत्र संख्या :46
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : दैव आदि सष्टि के प्रभेद हैं, अर्थात् एक दैवी सृष्टि, दूसरी मनुष्यों की सृष्टि है। यहां पर दैव और मनुष्यों के कहने से यह न समझना चाहिए कि देवता जैसे और साधारण मनुष्य मानते हैं वही हैं किन्तु विद्वानो का नाम देव है और जो मिथ्या बोलते हैं वे मनुष्य हैं किन्नर, गन्धर्व, पिशाच आदि यह सब मनुष्यों के ही भेद हैं जैसा कि श्रुतियां कहती हैं।
‘‘सत्य वै देवा अनृतं मनुष्यः, विद्वासोरि देवा’’ इत्यादि। और महर्षि कपिल जी को भी यही बात अभीष्ट है, जैसा कि उन्होंने आगे ५३वें सूत्र में प्रति पादन किया है। अब सष्टि का प्रयोग कहते हैं-