सूत्र :नेतरादितरहानेन विना II3/45
सूत्र संख्या :45
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : ऊह पंचक के बिना मन्त्र आदिकों से तत्व की सिद्धि प्राप्त नहीं होती क्योंकि वह सिद्धि इतर अर्थात् विपर्यय ज्ञान के बिना ही प्राप्त होती है, अतएव सांसारिकी सिद्धि होने के कारण यह पार-मार्थिकी नहीं कहला सकती। बस यहां तक समष्टि सर्ग और प्रत्यय-सर्ग समाप्त हो गया, इससे आगे ‘‘व्यक्तिभेदः कर्मविशषात्’’ इस संक्षेप से कहे हुए सूर्त को विशेष रूप से प्रतिपादन करेंगे।