सूत्र :कर्मवैचित्र्या-त्प्रधानचेष्टा गर्भदासवत् II3/51
सूत्र संख्या :51
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : यह सब प्रधान अर्थात् प्रकृति की चेष्टा कर्मों की विचिर्तता से होती है, क्योंकि दृष्टांत भी है, जैसे- कोई दासी अपने स्वामी के वास्ते नाना प्रकार की चेष्टा करती है, वैसे ही उसका पुत्र भी अपने स्वामी के प्रसन्नतार्थ नाना प्रकार की चेष्टा करने लगता हैं, अतएव जो जैसा कर्म करेगा उसकी सृष्टि भी वैसा ही करेगी, इसमें कोई संदेह नहीं हैं।
प्रश्न- ऊध्र्व की सृष्टि सत्वगुण प्रधान है, तो मनुष्य उसी के कृतार्थ हो सकता है, फिर मोक्ष से क्या करना है?