सूत्र :वृत्तिनिरोधात्तत्सिद्धिः II3/31
सूत्र संख्या :31
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जिसका किया जावे, उसके अतिरिक्त वृत्तियों के विरोध से अर्थात् सम्प्रज्ञात योग से उसकी सिद्धि जानी जाती है, और ध्यान तब तक ही करना चाहिये जब तक ध्येय के सिवाय दूसरे की तरफ को चित्त की वृत्ति न जावे अब ध्यान के साधनों को कहते हैं