सूत्र :रागो-पहतिर्ध्यानम् II3/30
सूत्र संख्या :30
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : ज्ञान के रोकने वाले रजोगुण के कार्य जो विषय-वासनादिक हैं उनका जिनसे नाश हो जाय, उसे ध्यान कहते हैं। यहां पर ध्यान शब्द से धारणा ध्यान, समाधि, इन तीनों का ग्रहण है, क्योंकि पतंजलि ने योग के आठ अंगों को ही विवेक में साक्षात् हेतु माना है। इसके अवान्तर भेद भी उसी शास्त्र में विशेष मिलेंगे बाकी पांच साधनों को आचार्य आप ही कहेंगे। अब ध्यान की सिद्धि के लक्षणों को कहते हैं। -