सूत्र :इतरस्यापि नात्यन्तिकम् II3/27
सूत्र संख्या :27
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : कर्म का विशेष फल नहीं है, किन्तु सामान्य ही फल है इस सूत्र में ‘इतर’ शब्द से कर्म का ग्रहण इसलिए हो सेता है कि इस प्रकरण में ज्ञान से मुक्ति होती है, कर्म से नहीं। इसी का प्रतिपादन करते चले आते हैं, इस वास्ते ज्ञान के अतिरिक्त कर्म का ही ग्रहण हो सकता है। यदि ऐसा कहा जाये कि ज्ञान के अतिरिक्त अज्ञान का ग्रहण किया सो भी ठीक नहीं, क्योंकि इस सूत्र में आचार्य का अपि और नात्यन्तिक शद कहना कर्म से न्यून फल जताने वाला है, जब इतर से अज्ञान का ग्रहण किया जाय, तो ऐसा अर्थ होगां, कि अज्ञान का थोड़ा फल है बहुत नहीं, इससे थोड़े फल का अभिलाषी अज्ञान को ही उत्तम समझा सकता है इस वास्ते ऐसा अनर्थ करना अच्छा नहीं। इससे आचार्य ने कर्म की अपेक्षा ज्ञान को उत्तम माना है। योगी के संकल्प-सिद्ध पदार्थ भी मिथ्या नहीं हैं इस बात का आगे के सूत्र से और भी प्रत्यक्ष करेंगे।